सच्चाई : डायरेक्टर डॉ. राजकुमार पर 2021 में सैफई मेडिकल इंस्टीट्यूट के मैजेजमेंट में नाकामी के कारण यूपी सरकार ने की थी कार्रवाई, टेन्योर खत्म होने से पहले ही भेजे गए थे छुट्टी पर
Samachar Post, रांची : रिम्स निदेशक डॉ. राजकुमार ने मंगलवार शाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर एक वीडियो जारी कर अपने छह माह के कार्यकाल के बारे जानकारी दी। इस वीडियो में न सिर्फ उन्होंने अपनी बढ़ाई की, बल्कि मीडिया के लिए अपशब्द भी कहें और लोगों को गलत जानकारी देकर गुमराह भी किया। डायरेक्टर डॉ. राजकुमार ने वीडियो की शुरूआत यह कहकर की कि उनके आने ये पहले रिम्स पूरी तरह डेड इंस्टीट्यूट था। न यहां पर कोई सिस्टम था, इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर मुख्य मशीनें भी नही थी। मरीजों को दवाईयां भी नही मिल रही थी, सर्जिकल आइटम्स भी नही थे। डॉक्टर्स भी 2 बजे के बाद उपलब्ध नही होते थे। आते-आते हमने (डायरेक्टर ने) 40-41 तरह के सिस्टम बनाने की कोशिश की, कुछ चलने लगे हैं और कुछ चलने के फेज में है और इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में हर दिन कुछ न कुछ डेवलपमेंट कर रहे हैं। डायरेक्टर ने जो भी कहा इसपर समाचार पोस्ट की टीम ने रिसर्च किया। जानिए क्या तथ्य सामने आएं।
दवा अब भी मरीज बाहर से खरीद रहें… देखें वीडियो
डायरेक्टर का दावा कि मरीजों को दवाईयां अब रिम्स में मिल रही है। लेकिन बुधवार को भी भर्ती मरीज प्राइवेट दुकानदार से दवा लेते दिखाई दिए। न्यूरोसर्जरी विभाग में भर्ती मरीज के परिजन ने बताया कि डॉक्टर ने 4 तरह की दवा बाहर से लाने के लिए दी थी, 6 हजार खर्च कर दवा लेकर आ रहा हूं। जब समाचार पोस्ट की टीम ने दवा देखा तो उसमें पैन 40 की इंजेक्शन भी शामिल मिली। सोचने वाली बात है कि 2200 बेडेड मेडिकल कॉलेज में गैस की मामूली दवा उपलब्ध नही है। इसके बाद भी निदेशक लोगों को गुमराह करते हुए अपनी उपलब्धि गिना रहे हैं।
निदेशक बोलें- इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर मुख्य मशीनें भी नही थीं, इनके आने के बाद भी वहीं स्थिति
निदेशक ने कहा कि रिम्स में इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर मुख्य मशीनें भी नहीं थी। अर्थात आने के बाद इन्होंने मशीनें खरीदी। लेकिन रिम्स के विभिन्न विभागाें के चिकित्सकों से जानकारी लेने के बाद पता चला कि किसी भी विभाग में पिछले छह माह में मुख्य मशीनों की खरीददारी नही हुई है। सिर्फ विभागों से उपकरणों की लिस्ट मांगी गई थी, जिसकी फाइल डायरेक्टर के यहां रुकी हुई है। जानकारी के अनुसार सिर्फ सुपरस्पेशियलिटी आईसीयू के लिए कुछ मशीनों का टेंडर किया गया है। बाकी स्थिति पहले की जैसी ही है।
डाॅक्टरों पर उठाया सवाल- 2 बजे के बाद डॉक्टर बैठते नहीं थे
रिम्स निदेशक ने अपनी उपलब्धि गिनाने के लिए अपने संस्थान के डॉक्टरों पर ही सवाल उठा दिया। बोलें कि रिम्स के डॉक्टर्स 2 बजे के बाद उपलब्ध नही होते थे। जबकि सच्चाई है कि सालों से रिम्स में ओपीडी का समय सुबह 9 से दोपहर 1 और 3 से शाम 5 बजे तक निर्धारित था। रिम्स के रिकॉर्ड में भी दर्ज है कि डॉक्टरों ने शाम 5 बजे तक मरीजों का इलाज किया है। हां, इसे झुठलाया नही जा सकता है कि कभी कभी अपने कामों के कारण कुछ डॉक्टर 5 बजे से पहले ही ओपीडी से चले जाते थे। लेकिन यह महीनों में 1-2 दिन की बात है।
सबसे बड़ा आरोप- रिम्स इनके आने से पहले डेड था? पूर्व के डायरेक्टरों के कार्यकाल में लगाया बड़ा प्रश्न चिन्ह?
राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पिछले साढ़े चार साल से रिम्स को राज्य का लाइफलाइन कह रहे हैं, ऐसे में इसे रिम्स निदेशक ने डेड बता दिया। उन्होंने कहा कि उनके आने से पहले रिम्स पूरी तरह डेड था। निदेशक के इस बयान का मतलब है कि उनके योगदान से पहले किसी भी डायरेक्टर ने रिम्स के लिए कुछ भी नही किया। सभी डायेक्टर आएं और अपना कार्यकाल जैसे-तैसे काटा और चले गए। डॉ. राजकुमार ने पूर्व के सभी डायरेक्टर के कार्यकाल पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया।
समाचार पोस्ट की टीम को रिसर्च में मिली जानकारी… डॉ. राजकुमार पर यूपी सरकार कर चुकी है कार्रवाई
रिम्स के वर्तमान निदेशक साल 2021 में उत्तरप्रदेश के सैफई मेडिकल इंस्टीट्यूट में वाइस चांसलर थे। वहां इनका टेन्योर खत्म होने से पहले ही मैनेजमेंट में नाकामी के कारण यूपी सरकार ने बड़ी कार्रवाई की थी। इन्हें टेन्योर पूरा होने से पहले ही छुट्टी पर भेज दिया था। उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने का कारण कोरोना काल में यूनिवर्सिटी में फैली अव्यवस्था का हवाला दिया गया था।