Samachar Post डेस्क, रांची :दिल्ली में रविवार को एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई। बलात्कार के दोषी कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत (सजा निलंबन) के बाद भगवा परिधान में महिलाओं का एक समूह उसके समर्थन में सड़क पर उतर आया। महिलाओं ने सेंगर के पक्ष में नारे लगाए और उन महिला प्रदर्शनकारियों से बहस व झड़प करती भी दिखीं, जो रेप केस में दी गई राहत का विरोध कर रही थीं।
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महिलाओं के बीच ही आमने-सामने की स्थिति
घटना के दौरान दो महिला समूहों के बीच तीखी नोकझोंक और टकराव देखा गया, एक समूह सेंगर को मिली राहत के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है। दूसरा समूह रेप दोषी के समर्थन में नारेबाज़ी कर रहा है। समर्थन में उतरी महिलाओं के प्रदर्शन ने समाज और राजनीति में धर्म-जाति आधारित ध्रुवीकरण को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
समर्थन में दिए गए तर्क ने बढ़ाया विवाद
सेंगर के समर्थन में उतरी महिलाओं ने प्रदर्शन के दौरान जो तर्क दिया, वह सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। उनका कहना था जब बेंगलुरु के IT इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या मामले में आरोपी महिला को 30 दिनों के भीतर जमानत मिल गई थी, तब कोई विरोध में क्यों नहीं उतरा? अब सेंगर को राहत मिली तो विरोध क्यों? महिलाओं ने यह भी कहा कि रेप पर राजनीति बंद होनी चाहिए और रेप की राजनीति गलत है। इन बयानों के बाद सोशल मीडिया पर यूज़र्स इसे तर्कहीन तुलना और न्याय बनाम अपराध की गलत व्याख्या बता रहे हैं।
राजनीति और महिला चेतना पर उठे सवाल
इस घटना के बाद कई गंभीर प्रश्न सामने आ रहे हैं क्या राजनीतिक ध्रुवीकरण महिलाओं की चेतना और आत्मसम्मान को प्रभावित कर रहा है? क्या यह पहली बार है जब रेप दोषी के पक्ष में महिलाएं प्रदर्शन में उतरीं? क्या अपराध और जमानत के मामलों की तुलना को सही ठहराया जा सकता है? विशेषज्ञों का कहना है कि यह घटना समाज में नैरेटिव व धारणा आधारित राजनीति के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती है, जहां तथ्यों से ज्यादा भावनात्मक और वैचारिक अपील असरदार बनती दिख रही है।
प्रशासन और राजनीति पर भी निशाना
घटना को लेकर विपक्षी और सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया तेज है। कई महिला समूहों का आरोप है कि सरकार इस मुद्दे पर स्पष्ट संदेश देने में विफल रही। राजनीतिक नैरेटिव के दबाव में नैतिक विरोध कमजोर पड़ रहा है।
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