Samachar Post रिपोर्टर, रांची : झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूजे) में जारी दो-सप्ताहिक क्षमता निर्माण कार्यक्रम (CBP) के तीसरे दिन की शुरुआत आध्यात्मिक और सकारात्मक ऊर्जा के माहौल में हुई। असम से आए एक प्रतिभागी द्वारा गायत्री मंत्र के उच्चारण ने पूरे दिन के सत्रों में एकाग्रता और उत्साह का संचार किया। इसके बाद पाठ्यक्रम निदेशक प्रो. (डॉ.) तपन कुमार बसंतिया ने विशिष्ट अतिथियों का स्वागत कर दिन के अकादमिक कार्यक्रमों का औपचारिक उद्घाटन किया।
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दार्शनिक प्रतिमानों पर प्रभावशाली व्याख्यान
दिन के सभी प्रमुख सत्र IIT–ISM धनबाद के मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग के प्रो. अजीत कुमार बेहुरा द्वारा संचालित किए गए। अपने प्रथम सत्र में उन्होंने “शोध के दार्शनिक प्रतिमान” विषय पर विस्तृत चर्चा की और बताया कि प्री-पॉज़िटिविज़्म, पॉज़िटिविज़्म और पोस्ट-पॉज़िटिविज़्म जैसे प्रतिमान शोध की दिशा और उसकी वैचारिक संरचना को गहराई से प्रभावित करते हैं। प्रो. बेहुरा ने ‘Lord’ और ‘God’ जैसे शब्दों के उदाहरण से समझाया कि संदर्भ बदलने पर अर्थ भी बदल जाते हैं, जिस प्रकार शब्दों का रूपांतरण होता है, उसी प्रकार शोध प्रतिमानों का विकास भी समय और परिस्थितियों के साथ होता है। उन्होंने ज्ञानमीमांसा और सत्तामीमांसा जैसी जटिल अवधारणाओं को सरल भाषा में स्पष्ट किया। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने अनुभव और अभिव्यक्ति के अंतर को रेखांकित करते हुए कहा कि अनुभव पूर्णतः आंतरिक और अकथनीय होता है, जबकि अभिव्यक्ति भाषा-निर्भर और व्यक्तिनिष्ठ होती है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी समुदाय में ‘सत्य’ अक्सर ज्ञान-स्रोत की विश्वसनीयता पर आधारित होता है। द्वितीय सत्र में उन्होंने जोर देकर कहा कि “शोध मूल्य-निर्पेक्ष होना चाहिए”, क्योंकि मूल्य और निजी विचार शोध की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए वैज्ञानिक शोध में वस्तुनिष्ठता और निष्पक्ष निष्कर्ष अत्यंत आवश्यक हैं।
नमूना-करण पर व्यावहारिक सत्र
तीसरा सत्र झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के जनसंचार विभागाध्यक्ष प्रो. देव व्रत सिंह द्वारा संचालित किया गया। उनका विषय था, मात्रात्मक और गुणात्मक शोध में नमूना-करण प्रक्रिया। प्रो. सिंह ने नमूना-आकार निर्धारण, प्रोबैबिलिटी और नॉन-प्रोबैबिलिटी सैम्पलिंग के अंतर, तथा गुणात्मक शोध में प्रयुक्त उद्देश्यपूर्ण और स्नोबॉल सैम्पलिंग जैसी तकनीकों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि प्रतिनिधिक नमूना शोध निष्कर्षों की विश्वसनीयता और सामान्यीकरण क्षमता को सीधे प्रभावित करता है। उनके सत्र ने प्रतिभागियों को अपने शोध के लिए मजबूत और उपयुक्त सैम्पलिंग फ्रेम विकसित करने की स्पष्ट दिशा प्रदान की।
प्रतिभागियों की सक्रिय सहभागिता
तीसरे दिन सभी सत्रों में प्रतिभागियों ने सक्रिय रूप से प्रश्न पूछे, तर्क-वितर्क किए और अपने अनुभव साझा किए। दार्शनिक, नैतिक और कार्यप्रणाली संबंधी शोध मुद्दों पर हुई गहन चर्चाओं ने कार्यक्रम के उद्देश्य सामाजिक विज्ञान शोध क्षमता को सुदृढ़ करना को और मजबूत किया। दिन का समापन प्रतिभागियों द्वारा विशेषज्ञों के प्रति आभार व्यक्त करने और उनके मूल्यवान योगदान को सराहने के साथ हुआ।
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मैंने सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली है। पत्रकारिता के क्षेत्र में बतौर रिपोर्टर मेरा अनुभव फिलहाल एक साल से कम है। सामाचार पोस्ट मीडिया के साथ जुड़कर स्टाफ रिपोर्टर के रूप में काम कर रही हूं।