
- राष्ट्रपति के कार्यक्रम में नहीं बुलाने पर बोले डॉ. अंसारी- डायरेक्टर मनमर्जी से न चलाएं एम्स
Samachar Post डेस्क, देवघर : झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी देवघर स्थित एम्स के निदेशक पर जमकर बरसे हैं। उनकी नाराजगी का कारण बना है राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के हालिया देवघर दौरे का कार्यक्रम, जिसमें राज्य के स्वास्थ्य विभाग को विश्वास में नहीं लिया गया। मंत्री ने इसको लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर तीखा बयान जारी करते हुए कहा– “एम्स कोई निजी संस्था नहीं है, राज्य सरकार को विश्वास में लिया जाना चाहिए था।”
डॉ. अंसारी ने सवाल उठाया कि जब एम्स राज्य में काम कर रहा है, तो फिर राज्य के स्वास्थ्य विभाग की अनुमति के बगैर कार्यक्रम कैसे आयोजित किया जा सकता है? उन्होंने चेतावनी भरे अंदाज में कहा कि “डायरेक्टर एम्स को अपनी मर्जी से न चलाएं।” इसके साथ ही मंत्री ने एम्स में आउटसोर्सिंग के जरिए बाहरी लोगों की भर्ती पर भी नाराजगी जताई और इसे स्थानीय युवाओं के अधिकारों के खिलाफ बताया।
यह भी पढ़ें : सिरमटोली रैंप को लेकर आदिवासी संगठनों का विरोध तेज, 4 जून को झारखंड बंद का ऐलान
जेएमएम ने भी एम्स निदेशक की भूमिका पर खड़े किए सवाल
इस घटनाक्रम के बाद राजनीतिक गलियारों में भी हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी इस मुद्दे पर एम्स निदेशक की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं। दोनों दलों ने आरोप लगाया कि निदेशक केंद्र की एक खास पार्टी के इशारे पर काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य के मंत्री को राष्ट्रपति जैसे गरिमामय कार्यक्रम से दूर रखना अनुचित है।
वहीं दूसरी ओर, भाजपा ने डॉ. अंसारी के बयान को राजनीतिक स्टंट करार दिया। पार्टी के नेताओं ने कहा कि राज्य सरकार को राष्ट्रपति के दौरे की पूरी जानकारी दी गई थी। ऐसे में इस तरह के आरोप केवल राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश हैं।
यह भी पढ़ें : टेरर फंडिंग मामले में आरोपी TSPC जोनल कमांडर आक्रमण गंझू की जमानत पर 11 को हाईकोर्ट में सुनवाई
राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में सरकार व विभागों की भागीदारी से कार्यक्रम और सफल होता
हालांकि इस पूरे विवाद के बीच डॉ. अंसारी ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति का झारखंड आना राज्य के लिए गौरव की बात है। लेकिन उन्होंने दोहराया कि ऐसे राष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में राज्य सरकार और विभागों की भागीदारी से ही बेहतर समन्वय स्थापित होता है और कार्यक्रम सफलता की ओर बढ़ता है। इस विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि राज्य और केंद्र सरकार के बीच समन्वय की कमी किस तरह प्रशासनिक प्रक्रियाओं और सम्मानजनक आयोजनों पर असर डाल सकती है।