
फैक्टर-8 इंजेक्शन खून को जमने में मदद करने वाला प्रोटीन, इसी की कमी हिमोफिलिया बीमारी का मुख्य कारण… फैक्टर-8 की अनुपलब्धता- जोखिम में डाल सकती है मरीजों की जान
Samachar Post, रांची : झारखंड में हिमोफिलिया जैसी गंभीर और दुर्लभ बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन इलाज के संसाधन और सुविधाएं आज भी सीमित हैं। राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में राज्य का सबसे बड़ा हिमोफिलिया केयर सेंटर संचालित है, इसका संचालन हिमोफिलिया सोसायटी द्वारा किया जाता है। इस सोसायटी के अधीन हिमोफिलिया से ग्रस्त 900 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि राज्य के सबसे बड़े सेंटर रिम्स में ही बीमारी की रोकथाम के लिए सबसे ज्यादा जरूरी फैक्टर-8 इंजेक्शन स्टॉक में महीनों से नही है। यहीं नहीं, साल भर में 7 से 8 महीना यह दवा आउट ऑफ स्टॉक रहती है। एक्सपर्ट के अनुसार, यह इंजेक्शन खून को जमने में मदद करने वाला प्रोटीन होता है, जिसकी कमी इस बीमारी का मुख्य कारण है। डॉक्टरों के अनुसार फैक्टर-8 की उपलब्धता न होने से कई बार इमरजेंसी में मरीजों की जान जोखिम में पड़ जाती है।
इंजेक्शन की कीमत प्रतिमाह 1.5 लाख तक
हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. अभिषेक रंजन ने बताया कि राज्य के प्रमुख हिमोफिलिया ट्रीटमेंट सेंटर में मरीजों को नए मॉलिक्यूल्स से इलाज दिया जा रहा है, जिसमें इंजेक्शन की कीमत प्रतिमाह 70 हजार से लेकर 1.5 लाख रुपये तक है। उन्होंने बताया कि विस्तारित फैक्टर VIII इंजेक्शन जो एक सप्ताह में एक बार दिया जाता है, उसकी मासिक लागत लगभग 70,000 आती है। वहीं, एमिसिजुमैब नामक आधुनिक दवा, जिसे महीने में केवल एक बार देना होता है, उसकी मासिक कीमत 1.5 लाख है। सदर अस्पताल के डे केयर सेंटर में 27 बच्चे इलाजरत हैं जिन्हें 1.5 लाख कीमत की एमिसिजुमैब निश्शुल्क उपलब्ध कराई जा रही है।
क्या है हिमोफिलिया?
सदर अस्पताल के हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. अभिषेक रंजन के अनुसार, हिमोफिलिया एक जेनेटिक और लाइफ-लॉन्ग डिसऑर्डर है, जिसमें खून का थक्का नहीं बनता या बनने में बहुत समय लगता है। यह बीमारी फैक्टर-VIII (हिमोफिलिया ए) या फैक्टर IX (हिमोफिलिया बी) की कमी के कारण होती है। सामान्य चोट में जहां खून कुछ देर में जम जाता है, वहीं हिमोफिलिया मरीजों में यह प्रक्रिया रुक जाती है, जिससे इंटर्नल ब्लीडिंग या लंबे समय तक खून बहने की स्थिति बन जाती है। यह बीमारी अधिकतर लड़कों में पाई जाती है क्योंकि यह एक्स गुणसूत्र से जुड़ी होती है। हालांकि, लड़कियां भी इसकी वाहक हो सकती हैं।
मरीजों की चुनौतियां…
- दवा की अनुपलब्धता : रिम्स में फैक्टर-8 और फैक्टर-9 की स्टॉक अक्सर खत्म हो जाती है।
- जागरूकता की कमी : ग्रामीण क्षेत्रों में इस बीमारी को लेकर जागरूकता बेहद कम है।
- महंगा इलाज : निजी अस्पतालों में इलाज कराना आर्थिक रूप से संभव नहीं।
हालांकि… हिमोफीलिया ट्रिटमेंट के लिए 13 जिलों में डे केयर सेंटर संचालित
झारखंड में हेमोफीलिया, थैलेसीमिया और सिकल सेल जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था लगातार मजबूत होती जा रही है। पूर्व में जहां केवल रिम्स में हिमोफीलिया डे केयर संचालित था, अब राज्य के 13 जिलों बोकारो, रांची, हजारीबाग, गिरिडीह, कोडरमा, दुमका, गोड्डा, पलामू, खूंटी, जमशेदपुर, सरायकेला-खरसावां और चतरा में भी डे केयर की सुविधा रोगियों को मिल रही है। इन सेंटरों में भी हेमोफीलिया मरीजों को विशेष देखभाल और उपचार मिल रहा है। हिमोफीलिया सोसायटी के संतोष जयसवाल ने बताया कि राज्य में हर मरीज की ट्रीटमेंट लॉगबुक तैयार की जा रही है, जिसमें दी गई दवा, डोज, ब्लीडिंग एपिसोड और उसके इलाज से जुड़ी हर जानकारी दर्ज होती है। इससे मरीजों के दीर्घकालिक प्रबंधन में पारदर्शिता और सटीकता बनी रहती है।
वर्ल्ड हिमोफिलिया डे आज :: झारखंड में हिमोफिलिया सोयायटी में बीमारी से ग्रस्त 900 बच्चे रजिस्टर्ड, इलाज का सबसे बड़ा सेंटर रिम्स पर यहां फैक्टर-8 की दवा आउट ऑफ स्टॉक।@IrfanAnsariMLA@HemantSorenJMM@MoHFW_INDIA@JPNaddahttps://t.co/FA7ZWRvFZY
— Samachar Post (@samachar_post) April 17, 2025