- हर साल 2 अप्रैल को इस न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के प्रति जागरूकता लाने के लिए मनाया जाता है वर्ल्ड ऑटिज्म डे
- इंडिया एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक रांची चैप्टर के डाॅक्टरों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी बीमारी से जुड़ी जानकारी, डॉ. राजेश कुमार बोलें- बच्चों में बातचीत करने और दूसरे लोगों से जुड़ने की क्षमता को कर देती है कम
Samachar Post, रांची : छोटे बच्चों के एक्टिविटी पर बचपन से ही नजर न रखा जाए तो वह गंभीर ऑटिज्म बीमारी का शिकार हो सकता है। इस बीमारी के लक्षण 6 माह के बाद से ही दिखने शुरू हो जाते हैं। इस बीमारी में बच्चे मानसिक रूप से थोड़े सुस्त हो जाते हैं। नाम पुकारने पर भी लंबे समय तक रिस्पॉन्स न करना। अपने उम्र के बच्चों और खिलौने के साथ कम खेलना। 18 माह की उम्र तक कोई भी अर्थपूर्ण शब्द न बोलना, सिर्फ किसी के द्वारा बाेले गए शब्दों को बार-बार दोहराना आदि शामिल है। हर साल 2 अप्रैल को इसी बीमारी के प्रति लोगाें में जागरूकता फैलाने के लिए दुनिया भर में ऑटिज्म दिवस मनाया जाता है। मंगलवार को इंडिया एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के रांची चैप्टर द्वारा बालपन हॉस्पिटल में प्रेसवार्ता कर उक्त बीमारी के संबंध में जानकारी दी गई।
समय पर इलाज मिले तो काफी हद तक बीमारी को किया जा सकता है ठीक
बालपन हॉस्पिटल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि यह बच्चों की काफी घातक बीमारी है। अगर बचपन में ही इसकी पहचान कर समय पर इलाज कराया जाए तो काफी हद तक बीमारी को ठीक किया जा सकता है और बच्चे सामान्य लोगों की तरह जीवन जी सकते हैं। लेकिन अभी भी लोग बच्चों में इस तरह के लक्षण को देखकर नजरअंदाज करते हैं। माता-पिता व परिवार इसे बीमारी ही नही मानते। लेकिन जैसे-जैसे बच्चे बड़े होने लगते है तब वे उन्हें लेकर डॉक्टर के पास आते हैं। इलाज में देरी के कारण कई बच्चे पूरी तरह से ठीक नही हो पाते है। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिताभ कुमार ने कहा कि जल्द से जल्द इस बीमारी की पहचान कर इसका इलाज कराना ही उपाय है।
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प्रति 100 में 3 बच्चे ऑटिज्म से पीडित
डॉ. शैलेश चंद्रा ने कहा कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर को बोलचाल की भाषा में आत्मकेंद्रीत बीमारी भी कहते हैं। यह कुल आबादी के करीब 3% बच्चों में देखने को मिलता है। यानी प्रति 100 में 3 लोग इससे पीड़ित होते हैं। इस बीमारी में मरीज को होने वाले लक्षण माइल्ड से सीवियर हो सकते हैं। डॉ. मीता पॉल ने कहा कि इसकी जांच के लिए एमसीएचएटी नामक स्क्रीनिंग प्रश्नावली का उपयोग किया जाता है। इससे पता लगाया जा सकता है कि क्या उक्त शिशु काे ऑटिज्म हो सकता है या नही। ऐसे बच्चों के सुनने और दृष्टि की जांच भी आवश्यक रूप से करानी चाहिए।