- जिंदगी की जंग जितने वाले 3 गंभीर रोगियों की कहानी… कैसे इनके परिजनों के लिए रिम्स के डॉक्टर बन गए भगवान
Samachar Post, रांची : रिम्स ट्रॉमा सेंटर का तीसरा तल्ला गंभीर से गंभीर मरीजों की जिंदगी की नई आस है। स्थिति ऐसी है कि अगर मरीज काफी गंभीर स्थिति में है और बेड़े प्राइवेट अस्पताल से डॉक्टर ने जवाब दे दिया है तो लोग ट्रॉमा सेंटर के क्रिटिकल केयर विभाग में एक खाली बेड मिलने की दुआ करते हैं। यह गंभीर से गंभीर मरीजों के लिए वरदान साबित हो रहा है। साल 2024 के शुरूआत से अब तक यानी जनवरी से 15 अप्रैल तक करीब 104 गंभीर मरीज यहां से पूरी तरह ठीक होकर वापस लौट चुके हैं। जबकि पिछले साल 823 मरीज स्वस्थ होकर घर में सामान्य जिंदगी जी रहे हैं। ये सभी वैसे मरीज थे जिनके ठीक होने या बचने की उम्मीद 5 या 10% से भी कम थी। इनमें से 70 प्रतिशत रोगी प्राइवेट अस्पताल से रेफर कर रिम्स भेजे गए थे। निजी अस्पताल के डाॅक्टरों ने जवाब देकर घर ले जाने को कहा, परिजनों ने रिम्स में अंतिम कोशिश करने की ठानी। जिसका साकारात्मक परिणाम भी देखने को मिला। क्रिटिकल केयर विभाग में भर्ती मरीज विप्लावेश मिश्रा के परिजनों ने जिस हाल में उन्हें अस्पताल में भर्ती किया था, देखकर न्यूरोसर्जरी के डॉक्टरों ने कह दिया था कि 24 घंटे भी सर्वाइव करना मुश्किल है। 3 नवंबर को उसे क्रिटिकल केयर विभाग में शिफ्ट किया गया था। रविवार को उसे भर्ती हुए 5 महीने 11 दिन पूरे हुए। मरीज अब बिल्कुल स्वस्थ है।
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मरीज विप्लावेश मिश्रा। |
1. सिर की हड्डी, हाथ-पैर में गहरे जख्म… स्थिति गंभीर देख ड्रेस ने ड्रेसिंग करने से मना कर दिया था
क्रिटिकल केयर आईसीयू में भर्ती 55 वर्षीय विप्लावेश मिश्रा को 5 महीने 11 दिन पहले 3 नवंबर काे परिजन रिम्स लेकर पहुंचे थे। घाटशिला में चलती ट्रेन से उतरने के क्रम में गिरने के बाद ब्रेन की हड्डियां टूट गई थी। पैर-हाथ व कमर की पसलियां भी टूट चुकी थी। बाएं हाथ की दो ऊंगलियां कट कर वहीं गिर गई। एमजीएम जमशेदपुर पहुंचते ही उसे रिम्स रेफर किया गया। यहां न्यूरोसर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने क्रिटिकल स्थिति देखते हुए मरीज को सीसीआईसीयू में ट्रांसफर कर दिया। इलाज कर रहे डॉ. जयप्रकाश ने बताया कि शरीर में कोई रिस्पोंस नही था। ब्रेन में गंभीर इंजुरी था। बचने की उम्मीद 5% भी नहीं थी। देखकर लगा था 24 घंटा भी सर्वाइव नही कर सकेगा। कई दिनों तक ड्रेसर मरीज की स्थिति देखकर ड्रेसिंग करने से इंकार कर दिया था। 163 दिन बाद अब विप्लावेश मिश्रा पूरी तरह स्वस्थ हैं। रविवार को व्हील चेयर में घूम कर धुप का मजा ले रहे थें। घटना कैसी घटी… विप्लावेश मिश्रा ने खुद से अपना दर्द बयां किया।
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मरीज हसबुन खातून। |
2. हमने सोचा मर गई, अब लौटकर नही आएगी- फिर डॉक्टरों ने देखा सांसें चल रही है
क्रिटिकल केयर के बेड नंबर 12 में भर्ती 22 साल की हसबुन खातून… पत्नी की स्थिति के बारे बताते मो. शाहीद रो पड़ा। बताया कि पेट में दर्द के कारण हजारीबाग में इलाज के लिए लेकर गए थे। वहां डॉक्टरों ने जानकारी दी कि किडनी की परेशानी है। रांची रेफर कर दिया। रिम्स लाने पर बेड नही मिला, फिर परिजन उसे मेदांता अस्पताल ले गए। जब स्थिति और बिगड़ गई तो लेकर दोबारा रिम्स पहुंचें। यहां पहुंचते ही मरीज की ब्लीडिंग शुरू हो गई। शरीर में कोई जान नही थी। हमें लगा कि हसबुन अब नही रही। अब वह लौटकर नही आएगी। तब डॉक्टरों ने देखा सांसें चल रही है। इसके बाद क्रिटिकल केयर विभाग में शिफ्ट कर डॉक्टरों ने भरोसा दिया। अब मरीज स्वस्थ हो चुकी है। वेंटिलेटर सपोर्ट से बाहर आकर खुद से सांस ले रही है। डॉ. जयप्रकाश ने बताया कि मरीज का लीवर-किडनी दोनों खराब हो गया था। हीमोग्लोबिन 5 के नीचे आ गया था। सेप्टिक शौक में चली गई थी, ब्लड प्रेशर भी 80/40 पर पहुंच चुका था।
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मरीज आयुष कुमार। |
3. एक्सीडेंट से ब्रेन की हड्डी टूटी, फिर पूरी हड्डी निकाली पड़ी
हजारीबाग का आयुष कुमार। उम्र मात्र 16 साल। 16 दिसंबर से ही आयुष रिम्स के क्रिटिकल केयर विभाग में एडमिट है। 3 महीने वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहकर मशीन से सांस ले रहा था। 7 दिन से वह खुद से सांस ले रहा है। बचने की उम्मीद 5% भी नही थी, अब डॉक्टरों ने ठीक होने की 95% गारंटी दे दी है। आयुष की मां पम्मी सिन्हा ने बताया कि बीए में एडमिशन के कुछ कागजात कॉलेज में जमा करना था। बाइक से जाते वक्त डिवाइडर से टकराने के बाद 5 दिसंबर को उसके ब्रेन की हड्डियां बूरी तरह से टूट गई थी। हाथ-पैर के साथ शरीर के बाकी हिस्सों में भी चोटें आई थी। स्थिति यह आ गई कि मरीज को बचाने के लिए ब्रेन की हड्डियां तक निकालनी पड़ी। अब आयुष के माथे में एक भी हड्डी नही है। लेकिन उसकी स्थिति में काफी सुधार है। पम्मी सिन्हा ने कहा कि रिम्स के डॉक्टर के रूम में मैं हर दिन भगवान को देखती हूं, रोज मेरे पास आकर मेरे बेटे को थोड़ा-थोड़ा ठीक कर रहे हैं।
रिम्स ट्रॉमा क्रिटिकल केयर में एक से बढ़कर एक एक्सपर्ट डॉक्टरों की टीम
क्रिटिकल केयर के हेड डॉ. प्रदीप भट्टाचार्य के नेतृत्व में यहां एक से बढ़कर एक क्रिटिकल केयर की टीम है। विभाग में डॉ. भट्टाचार्य के अलावा डॉ. जयप्रकाश, डॉ. सुदीप्तो, डॉ. वरुण, डॉ. कुणाल, डॉ. जगमोहन, डॉ. टूडू, डॉ. पराग समेत अन्य डॉक्टर शामिल हैं। सभी डॉक्टर हर दिन 24 घंटे क्रिटिकल रोगियों की सेवा में तत्पर रहते हैं। यहां पर्याप्त नर्सिंग स्टाफ के साथ, वेंटिलेटर टेक्निनियन, आईसीयू टेक्निशियन व अन्य स्टाफ हैं।