Samachar Post डेस्क,पटना :बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के रुझानों ने एक बार फिर राज्य की राजनीति में हलचल बढ़ा दी है। और हर बार की तरह इस बार सबसे बड़ा सवाल वहीआख़िर नीतीश कुमार को अपराजेय क्या बनाता है? लगभग 25 साल की राजनीतिक यात्रा, सुशासन की छवि, महिलाओं का मजबूत समर्थन और गठबंधन राजनीति में गहरी समझ यही वे कारण हैं जो आज भी उन्हें बिहार की राजनीति का सबसे प्रभावशाली चेहरा बनाते हैं। शुरुआती रुझानों में जेडीयू 70 से ज्यादा सीटों पर बढ़त में है, और नीतीश एक बार फिर चर्चा के केंद्र में।
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क्या नीतीश का अनुभव फिर दिलाएगा जीत?
रुझान आते ही राजनीतिक गलियारों में यह बहस तेज हो गई है क्या नीतीश कुमार का तजुर्बा और संकट प्रबंधन क्षमता इस चुनाव में भी एनडीए को जीत की चाबी सौंप देगी? शुरुआती गिनती में जेडीयू 73 सीटों पर आगे दिखी, जो इस बात की गवाही है कि नीतीश आज भी बिहार की राजनीतिक हवा को बखूबी पढ़ लेते हैं।
NDA को भरोसा नीतीश हैं सेंटर ऑफ ग्रैविटी
एनडीए अपनी मजबूती तीन बड़े आधारों पर टिकाए है:
- नीतीश कुमार की राजनीतिक पूंजी: दो दशक से ज्यादा समय से बिहार की सत्ता में बनाए रखना ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। आलोचनाओं और गठबंधन बदलने के बावजूद उनकी “गुड गवर्नेंस” ब्रांडिंग कायम है। इस चुनाव में भी वे गठबंधन की धुरी बने हुए हैं।
- महिलाओं का मजबूत वोट बैंक: मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना और जीविका समूहों के जरिए किया गया सशक्तिकरण महिलाओं में नीतीश की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है। पिछले चुनावों की तरह इस बार भी महिलाओं का वोट चुनावी समीकरण बदल सकता है।
- जातिगत समीकरण का नया कॉम्बिनेशन: चिराग पासवान (एलजेपी-आर) और उपेंद्र कुशवाहा (आरएलएम) की एनडीए में वापसी ने सामाजिक समीकरण को बड़ा कर दिया है। चिराग पासवान कई सीटों पर निर्णायक प्रभाव डालते दिख रहे हैंअब तक 23 सीटों पर बढ़त के साथ।
तेजस्वी यादव का चुनौतीपूर्ण समीकरण- क्या नया गठजोड़ चलेगा?
महागठबंधन इस बार अपने पारंपरिक मुस्लिम यादव वोट बैंक से आगे बढ़ने की कोशिश में है। वीआईपी और IIP को साथ लाने का मकसद नदी किनारे बसे समुदायों और ईबीसी समूहों को जोड़ना है। तेजस्वी यादव अपनी युवा अपील, बेरोजगारी पर फोकस और जनसभाओं की ऊर्जा से एक “विकल्प” तो बना रहे हैं, लेकिन असली चुनौती यही है क्या उनका यह व्यापक सामाजिक गठजोड़ वास्तविक वोटों में बदल पाएगा? कांग्रेस अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए सम्मानजनक संख्या जुटाना चाहती है। वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी इस चुनाव का “वोट शेयर फैक्टर” बन सकती है सीटें कम मिलें, पर कई जगह मुकाबला प्रभावित कर सकती है।
सबसे बड़ा सवाल: क्या नीतीश अब भी बिहार की सबसे असरदार ताकत?
मतगणना पूरी होने के बाद तस्वीर साफ होगी, लेकिन रुझान यह बता रहे हैं कि बिहार की राजनीति अभी भी दो ध्रुवों में बंटी है। एक तरफ नीतीश कुमार का अनुभव, दूसरी तरफ तेजस्वी यादव की युवा ऊर्जाऔर इसी राजनीतिक द्वंद्व के बीच वह सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है क्या नीतीश कुमार आज भी बिहार की राजनीति में सबसे प्रभावी और भरोसेमंद नेता हैं?
Reporter | Samachar Post