50 पैसे में मिलती है पेनिसिलिन दवा, यह सिकल सेल में इंफेक्शन से होने वाली मौत को रोकने में कारगर, पर दुर्भाग्य यह दवा सरकारी सप्लाई में नहीं।
- झारखंड के इकलौते खून संबंधित बीमारी के एक्सपर्ट डॉ. अभिषेक रंजन ने कहा- सरकारी सप्लाई में यह दवा मिले तो 50 से 60% तक मौत को कंट्रोल किया जा सकता
- निजी दवा दुकान में भी यह दवा अनुपलब्ध, क्योंकि 50 पैसे की दवा में मार्जिन नही होने के कारण अधिकांश दुकानदार स्टॉक में रखते ही नहीं
Samachar Post डेस्क, रांची : झारखंड में करीब 15% ट्राइबल पॉपुलेशन में सिकल सेल नामक गंभीर बीमारी के जीन हैं। ट्राइबल आदिवासी के बीच पूर्व में हुए स्क्रीनिंग में यह आंकड़ें सामने आए थे। इन आबादी में 2 से 3% बच्चे सिकल सेल बीमारी की चपेट में हैं। यह खून से संबंधित अनुवांशिक बीमारी है, बीमारी माता-पिता से बच्चों में आती है। यह धीमी जहर की तरह काम करती है। बीमारी के कारण 5 साल से कम उम्र के हर 100 में 30 बच्चे की मौत हो जाती है।
इस बीमारी को लेकर समाचार पोस्ट ने झारखंड के हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. अभिषेक रंजन से बात की। उन्होंने बताया कि इस बीमारी के कारण शरीर का महत्वपूर्ण अंग स्प्लीन बार-बार सिक्लिंग (सिकुड़ने) के कारण डैमेज हो जाता है। इसलिए ऐसे बच्चों में कोई भी मामूली से मामूली बुखार तक जानलेवा हो सकता है। इसके कारण बच्चों में बोन, हार्ट, एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम समेत तरह-तरह के कॉम्पलीकेशन हो सकते हैं। डॉ. अभिषेक के अनुसार, इस बीमारी में ज्यादातर मौतें इंफेक्शन के कारण होती है। पर इसे मात्र 50 पैसे की दवा से रोका जा सकता है। 50 पैसे की दवा पेनिसिलिन (एक माह में 20 रुपये से भी कम) देकर मरीज में इंफेक्शन के रिस्क को रोक सकते हैं।
6 माह से 5 साल तक के बच्चों को दी जाती है पेनिसिलिन
डॉ. अभिषेक रंजन ने बताया कि पेनिसिलिन नाम की दवा 6 माह से 5 साल तक के बच्चों को दी जाती है। सिकल सेल के कारण बच्चों में तरह तरह के इंफेक्शन का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। और यह एक मात्र दवा है जो इंफेक्शन की संभावना को न सिर्फ कम करती है, बल्कि संभावना खत्म भी करती है। इसलिए यह दवा जीवनरक्षक के तौर पर सिकल सेल पीड़ित रोगियों के लिए कारगर है।
दुर्भाग्य : 50 पैसे की दवा न तो सरकारी सप्लाई में और न हीं निजी दुकानों में
समाचार पोस्ट ने जब इस दवा की पड़ताल की तो पता चला कि मात्र 50 पैसे कीमत की यह जीवनरक्षक दवा न तो सरकारी सप्लाई में है और न ही अधिकांश निजी दवा दुकानों में उपलब्ध है। निजी दवा दुकानों में इसलिए दवा उपलब्ध नही है क्योंकि इस दवा की बिक्री में बेहद कम मार्जिन है। वहीं, डॉ. अभिषेक बताते हैं कि यदि यह दवा सरकारी सप्लाई में उपलब्ध कराया जाए तो बीमारी से पीड़ित करीब 20-25% बच्चों की आयु वर्तमान की तुलना में 8 से 10 साल तक ज्यादा बढ़ सकती है।
सदर अस्पताल में सिकल सेल के रोजाना 10 से 12 रोगी पहुंचते हैं इलाज कराने
सदर अस्पताल में थैलेसिमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारी के लिए डे केयर संचालन होता है। यहां बच्चों के इलाज व नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन की व्यवस्था है। अस्पताल के आंकड़ों के अनुसार, हर दिन सदर अस्पताल में 10 से 12 सिकल सेल पीड़ित बच्चे इलाज कराने पहुंचते हैं। जबकि पिछले एक साल में सिकल सेल के 2500 से ज्यादा पीड़ितों का उपचार किया गया है। इनमें करीब 70 से 75% बच्चे अस्पताल में नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराते हैं।
गलत इलाज के कारण भी समय से पहले हो जाती है मौत : डॉ. अभिषेक
डॉ. अभिषेक ने बताया कि सदर अस्पताल में कई बार ऐसे भी बच्चे पहुंचते हैं जिन्हें मल्टीपल ट्रांसफ्यूज किया गया होता है। देखने को मिला है कि हेमोग्लोबिन 8 ग्राम, 7 ग्राम में भी ब्लड ट्रांसफ्यूजन कर दी जाती है, जबकि जबतक सिकल सेल पीड़ित की हेमोग्लोबिन 6 ग्राम से कम न हो तब तक उन्हें ब्लड ट्रांसफ्यूज नही करना चाहिए। इससे बच्चे और ज्यादा खराब होते हैं। थैलेसिमिया में हेमोग्लोबिन का स्तर 9 ग्राम मेनटेन करना होता है, लेकिन सिकल सेल में 6 ग्राम। गलत इलाज के कारण कई बार देखने को मिलता है कि मरीज की मौत समय से पहले हो जाती है।
मामूली बुखार को भी मेडिकल इमरजेंसी के रुप में लें
इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को मामूली बुखार भी हो तो इसे मेडिकल इमरजेंसी के रुप में लेना चाहिए। सामान्य रोगियों में बुखार होने पर 2-3 दिन के बाद एंटीबायोटिक लेते हैं, लेकिन इसमें तुरंत एंटीबायोटिक लेना अनिवार्य है, वरना जान जाने का रिस्क 90% तक बन जाता है।
इन बातों का रखें खास ध्यान
रिस्क फैक्टर/खतरे बढ़ाने वाले कारण
- वंशानुगत बीमारी : अगर माता-पिता में से कोई एक या दोनों सिकल सेल जीन के वाहक हैं तो बच्चों में बीमारी का खतरा अधिक होता है।
- संक्रमण : सिकल सेल रोगियों में इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, जिससे मामूली संक्रमण भी जानलेवा बन सकता है।
- कम ऑक्सीजन स्तर : तेज ऊंचाई, ज़्यादा शारीरिक मेहनत या ऑक्सीजन की कमी वाली स्थिति में क्राइसिस बढ़ सकता है।
- डीहाइड्रेशन : शरीर में पानी की कमी से ब्लड गाढ़ा हो जाता है, जिससे सिकल सेल ब्लॉकेज की आशंका बढ़ जाती है।
क्या-क्या नहीं करना चाहिए
- ज्यादा मेहनत या भारी व्यायाम नहीं करें, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की मांग बढ़ती है।
- धूप या अत्यधिक ठंड में अधिक देर तक न रहें, तापमान में बदलाव से ब्लड सर्कुलेशन बाधित हो सकता है।
- सिगरेट, शराब या नशीले पदार्थों से बचें, क्योंकि ये रक्त परिसंचरण को और बिगाड़ते हैं।
- इन्फेक्शन से खुद को बचाएं, बगैर सलाह के एंटीबायोटिक न लें, भीड़भाड़ वाले जगहों पर मास्क पहनें।
जरूरी सावधानियां
- भरपूर पानी पिएं : हाइड्रेशन बनाए रखना बेहद जरूरी है ताकि ब्लड पतला रहे और क्लॉटिंग न हो।
- नियमित हेल्थ चेकअप कराएं : हेमोग्लोबिन लेवल, लिवर और किडनी की स्थिति की मॉनिटरिंग जरूरी है।
- टीकाकरण करवाएं : जैसे निमोनिया, हेपेटाइटिस बी, इन्फ्लुएंजा आदि से सुरक्षा जरूरी है।
- दर्द या बुखार होने पर देरी न करें, तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें : यह किसी क्राइसिस की शुरुआत हो सकती है।
- फोलिक एसिड और जरूरी दवाएं नियमित लें, ताकि शरीर नई आरबीसी बना सके।