Samachar Post रिपोर्टर, रांची : झारखंड की पारंपरिक पाककला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। मोटे अनाज मड़ुआ (रागी) से बनने वाले पारंपरिक व्यंजन “मड़ुआ छिलका” को GI टैग (Geographical Indication Tag) दिलाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पर्यटन विभाग के निर्देश पर होटल प्रबंधन संस्थान (IHM) रांची ने आधिकारिक तौर पर आवेदन दाखिल कर दिया है।
केंद्र सरकार ने मांगी जानकारी
GI टैग प्रक्रिया के तहत केंद्रीय उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) ने कुछ बिंदुओं पर जानकारी मांगी है, जैसे :
- मड़ुआ छिलका किन मानकों पर अनूठा है?
- इसकी व्यंजन विधि और सांस्कृतिक महत्ता क्या है?
- GI टैग मिलने से झारखंड को क्या लाभ होंगे?
इन सवालों का जवाब तैयार करने की जिम्मेदारी IHM रांची को दी गई है, जो इस पूरी प्रक्रिया में समन्वयक संस्था की भूमिका निभा रहा है।
स्वाद, पोषण और परंपरा का संगम
IHM रांची के प्राचार्य डॉ. भूपेश कुमार ने बताया कि मड़ुआ छिलका सिर्फ स्वादिष्ट व्यंजन ही नहीं, बल्कि पोषण से भरपूर और सांस्कृतिक रूप से भी अहम है। यह झारखंड की पारंपरिक पाककला और स्थानीय जीवनशैली का हिस्सा है।
उनके अनुसार, इसकी विशेष व्यंजन विधि, अनूठा डिजाइन और पोषणीय गुणवत्ता इसे GI टैग के लिए उपयुक्त बनाती है।
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स्थानीय समर्थन भी जरूरी
IHM रांची का कहना है कि GI टैग की प्रक्रिया को मजबूती देने के लिए अब स्थानीय स्तर पर विभिन्न वर्गों से समर्थन जुटाया जा रहा है, जिनमें शामिल हैं:
- उत्पादक
- विपणन करने वाले
- विक्रेता
- स्वयं सहायता समूह (सखी मंडल)
यह साबित करने के लिए कि यह व्यंजन केवल पारंपरिक ही नहीं, बल्कि आज भी सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रासंगिक है।
क्या है GI टैग?
GI टैग (Geographical Indication Tag) किसी उत्पाद को उसकी भौगोलिक पहचान और विशेषताओं के आधार पर दिया जाता है। GI टैग मिलने से उस उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलती है और नकली या मिलावटी उत्पादों से भी सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
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मैंने सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली है। पत्रकारिता के क्षेत्र में बतौर रिपोर्टर मेरा अनुभव फिलहाल एक साल से कम है। सामाचार पोस्ट मीडिया के साथ जुड़कर स्टाफ रिपोर्टर के रूप में काम कर रही हूं।