- नियुक्ति प्रक्रिया अधर में, मरीजों और स्थानीय डॉक्टरों दोनों का नुकसान
Samachar Post रिपोर्टर, रांची : राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स इन दिनों नियुक्ति संकट से जूझ रहा है। संस्थान में वरीय रेजिडेंट के लगभग 200 पद बीते तीन सालों से खाली हैं। स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह ने बताया कि पिछली गवर्निंग बॉडी की बैठक में इन पदों को भरने के निर्देश दिए गए थे। विभाग ने एक वर्ष पूर्व वरीय रेजिडेंट की नियुक्ति के लिए रोस्टर भी रिम्स को उपलब्ध कराया था, लेकिन अब तक नियुक्ति प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई।
उन्होंने कहा कि हर साल औसतन 176 पीजी छात्र रिम्स से उत्तीर्ण होते हैं। यदि इनमें से 20% यानी 34 छात्रों को प्रतिवर्ष वरीय रेजिडेंट बनाया जाता, तो तीन साल में 102 योग्य डॉक्टर नियुक्त हो चुके होते। इसके विपरीत एम्स देवघर ने इसी नियम के तहत नियुक्तियां पूरी कर ली हैं, जबकि रिम्स अब भी पिछड़ रहा है।
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आयुष्मान से मिले पैसे रिम्स ने कराया है फिक्स डिपॉजिट
नियुक्तियों के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों को लेकर भी रिम्स प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं। निदेशक ने शपथ पत्र में स्वीकार किया है कि आयुष्मान भारत योजना से प्राप्त 17 करोड़ रुपये और संस्थान की आंतरिक आय से अर्जित 25 करोड़ रुपये को फिक्स्ड डिपॉजिट में रखा गया है। इन पैसों का उपयोग दवा, जांच और मरीजों के निशुल्क इलाज के लिए होना था, लेकिन वास्तविकता यह है कि गरीब मरीजों को अब भी निजी लैब्स में महंगी जांचें करवानी पड़ रही हैं और दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं।
Reporter | Samachar Post
मैंने सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली है। पत्रकारिता के क्षेत्र में बतौर रिपोर्टर मेरा अनुभव फिलहाल एक साल से कम है। सामाचार पोस्ट मीडिया के साथ जुड़कर स्टाफ रिपोर्टर के रूप में काम कर रही हूं।