- पहले कई डॉक्टर गर्भवति को डरा चुके थे- मां की जान को खतरा, बच्चेदानी निकालनी पड़ेगी
- डॉ. अपेक्षा साहू ने संभाला केस, 36 सप्ताह तक पहुंचाया और सफल सिजेरियन कर बचाई मां-बच्चे की जान
Samachar Post रिपोर्टर,रांची :शहर की 33 वर्षीय महिला ने वह दर्द और भय झेला, जिसे सुनकर ही किसी भी परिवार का हौसला टूट जाए। गर्भावस्था के पांचवें महीने (20 सप्ताह) में उन्हें एक बेहद खतरनाक स्थिति प्लेसेंटा एक्रीटा (Placenta Accreta) का पता चला। यह ऐसी अवस्था है जिसमें गर्भनाल (प्लेसेंटा) गर्भाशय की दीवार में असामान्य रूप से गहराई तक चिपक जाती है, जिससे प्रसव के समय गंभीर खून बहने, गर्भाशय निकालने, आईसीयू में भर्ती होने और यहां तक कि मां की जान जाने का भी खतरा रहता है। ऊपर से महिला को शुगर (डायबिटीज) भी थी, जिसकी वजह से जोखिम और बढ़ गया था। यही कारण था कि रांची के कई वरिष्ठ डॉक्टरों ने गर्भ रोकने और बच्चेदानी निकालने की सलाह दे दी थी।
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उम्मीद की किरण बनीं डॉ. अपेक्षा साहू, महिला को 36 सप्ताह तक सुरक्षित रख कराया प्रसव
निराशा के बीच आशा की एक किरण तब जगी जब परिवार की सलाह पर महिला डॉ. अपेक्षा साहू से मिलीं। डॉ. अपेक्षा पहले भी कई गंभीर प्लेसेंटा एक्रीटा और परक्रिटा (अत्यधिक गहराई वाले मामले) को सफलतापूर्वक संभाल चुकी हैं। उन्होंने मरीज को न केवल ढांढस बंधाया, बल्कि उसे गहन निगरानी में रखते हुए गर्भावस्था को सफलतापूर्वक 36 सप्ताह तक पहुंचाया इसके बाद प्रसव कराया।
पहली प्रसव पीड़ा पर तुरंत सिजेरियन
जब महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो डॉ. अपेक्षा ने तत्काल सिफारिशी सिजेरियन किया। ऑपरेशन के दौरान पैनिकर पीपीएच कैनुला (अत्यधिक रक्तस्राव रोकने की तकनीक) का उपयोग किया गया। अत्यंत तेज और कुशल सर्जरी के कारण न तो खून चढ़ाने की जरूरत पड़ी, न ही महिला को आईसीयू में जाना पड़ा। सबसे बड़ी सफलता मां, बच्चा और बच्चेदानी तीनों सुरक्षित बच गए। डॉ. अपेक्षा साहू ने बताया कि समय पर निर्णय, निरंतर निगरानी और विशेषज्ञता के कारण आज महिला और उनका नवजात दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं। बता दें कि यह मामला न सिर्फ डॉक्टर की कुशलता का प्रमाण है, बल्कि यह भी साबित करता है कि सही निर्णय और विशेषज्ञ देखरेख से प्लेसेंटा एक्रीटा जैसे गंभीर मामलों में भी सुरक्षित परिणाम संभव हैं।
Reporter | Samachar Post