Samachar Post डेस्क,बिहार: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं। एनडीए ने बड़ी जीत दर्ज की है और एक बार फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस और राजद अपने अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। वहीं, प्रशांत किशोर (पीके) का जनसुराज एक भी सीट जीतने में नाकाम रहा, जिसके बाद उन्हें लेकर कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं।
क्या पीके बिहार में रहेंगे या लौट जाएंगे?
चुनाव हारने के बाद बड़ा सवाल यह है कि क्या पीके बिहार में सक्रिय रहेंगे या राजनीति छोड़ जाएंगे। इसका जवाब फिलहाल भविष्य के लिए टल गया है। लेकिन इतना तय है कि पीके को बिहार और बिहारियों को पीके याद जरूर आएंगे। आज भले ही जाति समीकरण, सुशासन की राजनीति, हिंदू-मुस्लिम बहस और 10 हजार नकद के शोर में पीके लोगों को दिखाई नहीं दे रहे, पर उनकी बातें आने वाले समय में जरूर याद आएंगी।
तीन साल का जनसुराज अभियान शिक्षा, रोजगार और पलायन पर फोकस
पिछले तीन वर्षों में पीके ने बिहार के हर जिले, हर गांव में जाकर लोगों से सीधे संवाद किया। उनकी राजनीति का केंद्र केवल मुद्दे थे, शिक्षा की बदहाली, फैक्ट्रियों की कमी और रोजगार संकट, पलायन की मजबूरी, स्वास्थ्य सेवा की जर्जर व्यवस्था, प्रवासी मजदूरों की स्थिति, उन्होंने एक बड़ा जन जागरण अभियान चलाया, न कोई चंदा लिया, न किसी से समझौता किया। पीके ने सरकार की खामियों, भ्रष्टाचार और सिस्टम की कमजोरियों को खुलकर सामने रखा।
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अगर पीके बिहार में डटे रहे, तो बन सकते हैं मजबूत विपक्ष
अगर पीके बिहार छोड़ने के बजाय यहीं रुकते हैं और फिर से सक्रिय होते हैं, तो वे सदन के बाहर एक मुखर विपक्ष की भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि हार के बाद खुद को फिर से तैयार करना आसान नहीं होता पराजय को स्वीकार कर उठ खड़े होने के लिए साहस चाहिए। बहुतों को लगता है कि पीके के पास वह साहस है।
नई सरकार बनेगी, लेकिन क्या बदलाव आएगा?
बिहार में नई सरकार कुछ ही दिनों में बन जाएगी। सड़कों और पुलों का निर्माण जरूर बढ़ेगा, जिस पर अमीर वर्ग राहत महसूस करेगा। मगर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पलायन और प्रवासी मजदूरों की समस्याओं में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद अभी भी धुंधली है। क्योंकि जनता ने इन मुद्दों पर वोट ही नहीं दिया।
जब समस्याएं सताएंगी, पीके याद आएंगे
जब लोग फिर से अपने बच्चों की शिक्षा, अस्पतालों की हालत, नौकरी की तलाश और पलायन की मजबूरी पर सोचेंगे, तब उन्हें याद आएगा कि एक मौका था पर जाति, धर्म और 10 हजार रुपये की चकाचौंध में खो गया। संभव है कि कुछ साल बाद उनके बच्चे भी यही सवाल पूछें। उस समय पीके को बिहार जरूर याद करेगा।
Reporter | Samachar Post
मैंने सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली है। पत्रकारिता के क्षेत्र में बतौर रिपोर्टर मेरा अनुभव फिलहाल एक साल से कम है। सामाचार पोस्ट मीडिया के साथ जुड़कर स्टाफ रिपोर्टर के रूप में काम कर रही हूं।