- पहले चरण के मतदान से पहले सियासी माहौल में तेज़ी
Samachar Post डेस्क,बिहार :बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का माहौल अब पूरी रफ्तार पर है। 6 नवंबर को राज्य की आधी विधानसभा सीटों पर मतदान होना है, जबकि प्रचार 4 नवंबर शाम 6 बजे थम जाएगा। मोथा चक्रवात के बाद राजनीतिक गर्मी ने चुनावी हवा को और तीखा बना दिया है।
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प्रशांत किशोर की जन सुराज ने बनाया समीकरण उलझा हुआ
इस बार का चुनाव पहले से कहीं ज्यादा उलझा और अप्रत्याशित है। इसका सबसे बड़ा कारण हैं प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जन सुराज। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जन सुराज को मिलने वाले वोट ज्यादातर एनडीए के हिस्से से कटेंगे, जिससे महागठबंधन को सीधा फायदा नहीं होगा। दरअसल, जन सुराज मैदान में नहीं होती, तो एनडीए का माहौल और मजबूत होता। यही वजह है कि एनडीए जन सुराज पर सीधे हमलावर नहीं, बल्कि चुनाव को दो ध्रुवीय बनाने की कोशिश में है।
नीतीश कुमार का भावुक संदेश और बदलाव की हवा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में जनता से भावुक अपील करते हुए पूछा, मैंने बीस साल में अपने लिए क्या किया?यह बयान बदलाव की हवा में नई गूंज लेकर आया है। वहीं, भाजपा ने फिर से “जंगलराज” को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाते हुए लालू-राबड़ी शासनकाल की यादें ताज़ा कर दी हैं। इसके साथ राजद और कांग्रेस के परिवारवाद और भ्रष्टाचार के पुराने आरोपों को भी हवा दी जा रही है। नतीजा सत्ता विरोधी लहर कुछ हद तक धीमी पड़ती दिख रही है।
महागठबंधन की रणनीति और वोट बैंक की जंग
महागठबंधन ने इस बार अति पिछड़ों और दलित वर्गों पर खास फोकस किया है। उम्मीदवार चयन में भी विविधता लाई गई है ताकि एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके। महागठबंधन के पास पहले से करीब 35% आधार वोट हैं। अगर इसमें 5-6% वोट और जुड़ते हैं, तो सत्ता की राह आसान हो सकती है। फिर भी, एनडीए का गणित मजबूत माना जा रहा है खासकर अगर जन सुराज के वोट विभाजन का असर सीमित रहा।
मुस्लिम वोटरों में नई हलचल
इस बार का चुनाव मुस्लिम मतदाताओं के लिए भी चुनौती भरा है। असदुद्दीन ओवैसी और प्रशांत किशोर दोनों ने उनके बीच नई चर्चा छेड़ दी है। महागठबंधन ने अभी तक किसी मुस्लिम चेहरे को डिप्टी सीएम पद के लिए प्रोजेक्ट नहीं किया, जिससे असंतोष झलक रहा है। वहीं, भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण को बिना सीधे बयानबाज़ी किए सांकेतिक रूप से साधने की रणनीति पर काम कर रही है।
छठ पर राहुल गांधी की टिप्पणी से बढ़ा विवाद
राहुल गांधी के छठ पर्व पर दिए गए बयान ने सियासत को गरमा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुजफ्फरपुर की सभा में इसे छठ की “तौहीन” बताकर बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया। इसी बीच, नीतीश कुमार अल्पसंख्यक कल्याण के अपने कार्यों का उल्लेख करते तो हैं, लेकिन भाजपा की हिंदुत्ववादी रणनीति पर खुलकर विरोध नहीं करते।
एनडीए बनाम महागठबंधन: संगठन बनाम बिखराव
इस चुनाव में एनडीए का प्रचार अभियान बेहद संगठित और रणनीतिक है। भाजपा ने अपने सभी दिग्गज नेताओं को मैदान में उतार दिया है, जबकि कांग्रेस और राजद का प्रचार अभी भी ढीला और सीमित नजर आ रहा है। महागठबंधन को असली ताकत भाकपा (माले) से मिल रही है, खासकर मगध और शाहाबाद क्षेत्रों में।
जातीय समीकरण बनाम सुयोग्यता की लड़ाई
इस बार भी बिहार की राजनीति का मूल प्रश्न वही है क्या जातियां टूटेंगी, या फिर लोकतंत्र की छाती पर जातीय निष्ठाएं फिर से अपना डंका बजाएंगी ? हर पार्टी ने जातीय संतुलन को ध्यान में रखकर उम्मीदवार उतारे हैं। लेकिन सवाल है क्या बिहार इस बार वंशवाद, परिवारवाद और जातिवाद की सीमाओं से निकलकर सुयोग्य नेताओं को चुनेगा ? या फिर “हम नहीं सुधरेंगे” की परंपरा कायम रहेगी ?
Reporter | Samachar Post