सारंडा सेंक्चुरी विवाद से बढ़ी मुश्किलें
Samachar Post रिपोर्टर, रांची :झारखंड सरकार के सामने सारंडा सेंक्चुरी विवाद एक बड़ी चुनौती बन गया है। अगर यह मामला समय रहते नहीं सुलझा तो राज्य को करीब 13 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। इसके असर से न सिर्फ खनन उद्योग ठप हो जाएगा बल्कि हजारों लोगों की नौकरियां भी खतरे में पड़ जाएंगी।
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पीसीसीएफ पर उठे सवाल
यह पूरा विवाद पूर्व पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) सत्यजीत सिंह की वजह से खड़ा हुआ। उन्होंने प्रस्तावित सारंडा सेंक्चुरी का क्षेत्रफल बढ़ाकर 575 वर्ग किलोमीटर करने का प्रस्ताव भेजा और बिना सरकार की राय लिए उसी प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र के रूप में दाखिल कर दिया। जबकि असली प्रस्ताव करीब 400 वर्ग किलोमीटर का होना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की मुश्किल
समस्या तब और बढ़ गई जब वन सचिव ने सुप्रीम कोर्ट में वही शपथ पत्र दाखिल कर दिया, जिसे पीसीसीएफ (वाइल्ड) ने तैयार किया था। इसके बाद मामला सीधे सरकार के खिलाफ चला गया। बढ़े हुए क्षेत्रफल के कारण सारंडा इलाके की सभी खनन परियोजनाएं बंद करने की स्थिति बन जाएगी, जिससे आयरन ओर माइनिंग और उससे जुड़े कारोबार पर भारी असर पड़ेगा।
खनन उद्योग और रोजगार पर संकट
इससे सरकार को 13 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है। खनन गतिविधियां बंद होने से कारोबारी तबाह हो जाएंगे और खुदाई, लोडिंग और ढुलाई से जुड़े हजारों लोगों का रोजगार खत्म हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी
विधानसभा में जब सरयू राय ने यह मामला उठाया तब सरकार की नजर इस पर पड़ी। इसके बाद मुख्य सचिव के स्तर से मामले की समीक्षा की गई और प्रस्तावित क्षेत्रफल को संशोधित करने के लिए समिति का गठन किया गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस कार्रवाई को टालमटोल की नीति करार दिया। 17 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि अगर अधिसूचना जारी नहीं की जाती है तो मुख्य सचिव को जेल भेजा जाएगा।
8 अक्टूबर को अगली सुनवाई
अब इस मामले की अगली सुनवाई 8 अक्टूबर को होगी। सारंडा सेंक्चुरी विवाद सरकार के लिए राजनीतिक और आर्थिक दोनों मोर्चों पर संकट बनकर खड़ा हो गया है।
Reporter | Samachar Post