Samachar Post डेस्क, रांची : महिला-पुरुष संबंधों को लेकर पिछले सप्ताह दिल्ली हाई कोर्ट और जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाई कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं। ये दोनों फैसले प्रेम संबंधों के बाद शादी और लिव-इन संबंध में भरण-पोषण की मांग से जुड़े मामलों में न्याय व्यवस्था में नए मानदंड स्थापित करेंगे।
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दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विवाह का वादा करने के बाद भी अगर कोई व्यक्ति सोच-समझकर शादी से इंकार करता है, तो इसे ‘विवाह तोड़ना’ नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने एक मामले में आरोपी को जमानत दी। इस मामले में महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने होटल में बुलाकर उससे संबंध बनाए और शादी का वादा किया। आरोप था कि आरोपी ने आपत्तिजनक तस्वीरें भी लीं और बाद में शादी के लिए दहेज की मांग की। कोर्ट ने कहा कि दहेज अधिनियम की धाराओं के तहत दहेज की मांग अपराध है, लेकिन शादी से इंकार करना आरोपी का व्यक्तिगत अधिकार है और इसे झूठे वादे का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाई कोर्ट का फैसला
जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने लिव-इन संबंध में भरण-पोषण के अधिकार पर स्पष्ट निर्णय दिया। मामला लिव-इन पार्टनर के साथ 10 वर्षों तक रहने वाली महिला से जुड़ा था, जिसने अपने पार्टनर पर दुष्कर्म का आरोप लगाया और भरण-पोषण की मांग की। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि दोनों के बीच विवाह नहीं हुआ है और महिला ने अपने लिव-इन पार्टनर पर दुष्कर्म का आरोप लगाया है, तो ऐसे में उसे भरण-पोषण का हक नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा केवल विवाह या वैध संबंध की स्थिति में ही किया जा सकता है। ये फैसले महिला-पुरुष संबंधों, लिव-इन और शादी से जुड़े मामलों में कानूनी दृष्टि से दिशा निर्देश देंगे और भविष्य में इसी तरह के विवादों के समाधान में अहम भूमिका निभाएंगे।
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मैंने सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली है। पत्रकारिता के क्षेत्र में बतौर रिपोर्टर मेरा अनुभव फिलहाल एक साल से कम है। सामाचार पोस्ट मीडिया के साथ जुड़कर स्टाफ रिपोर्टर के रूप में काम कर रही हूं।