Samachar Post रिपोर्टर, रांची :रामगढ़ पुलिस का वांटेड (वर्तमान में जमानत पर) राजेश राम लगातार डीजीपी कार्यालय आता-जाता था। इस बात का खुलासा उसने मीडिया को भेजे गए अपने लीगल नोटिस में किया है। उसने दावा किया कि उसके खिलाफ दर्ज फर्जी मुकदमों की पैरवी के सिलसिले में वह डीजीपी कार्यालय गया करता था। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वह वहां किससे मिलता था – डीजीपी से, किसी एडीजी या अन्य आईपीएस अधिकारी से, या फिर केवल डीजीपी कार्यालय में पदस्थापित इंस्पेक्टर गणेश सिंह और सिपाही रंजीत राणा से?
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गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई?
जब राजेश राम वांटेड था, तो उससे मिलने वालों ने उसकी गिरफ्तारी क्यों नहीं कराई? क्या यह पुलिस अधिकारियों की कर्तव्य में लापरवाही नहीं है? यह विभागीय कार्यवाही और सीआरपीसी के प्रावधानों का उल्लंघन भी माना जा सकता है। सवाल यह भी है कि डीजीपी अनुराग गुप्ता के कार्यकाल में ही राजेश राम का कार्यालय में आना-जाना क्यों शुरू हुआ, जबकि इससे पहले कभी ऐसा नहीं देखा गया था।
क्या आवेदन दिए गए थे?
अगर मान भी लिया जाए कि अधिकारियों को राजेश राम पर वारंट की जानकारी नहीं थी, तो क्या उसने कोई आवेदन दिया था? यदि हां, तो उन पर रामगढ़ पुलिस को क्या कार्रवाई का निर्देश जारी किया गया? और यदि राजेश राम वाकई फर्जी मुकदमों में फंसाया गया था, तो इस पर विभाग ने कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया?
इंस्पेक्टर गणेश सिंह की भूमिका पर सवाल
सूत्र बताते हैं कि इंस्पेक्टर गणेश सिंह ने पहली बार राजेश राम की गिरफ्तारी के बाद भुरकुंडा थाना प्रभारी से बातचीत की थी। उसके मोबाइल की सीडीआर जांच इस तथ्य को साबित कर सकती है। लेकिन सवाल यह उठता है कि गणेश सिंह की भूमिका की जांच करेगा कौन?
गौरतलब है कि एसीबी का प्रभार हटने के तुरंत बाद डीजीपी अनुराग गुप्ता ने गणेश सिंह का तबादला एसीबी से झारखंड जगुआर में कर दिया, ताकि वह पुलिस मुख्यालय में उनके साथ काम कर सके। इससे यह शंका और गहरी होती है कि आखिर गणेश सिंह की विशेष भूमिका क्या है?
ऑडियो में नया खुलासा
इस बीच मीडिया को एक ऑडियो क्लिप मिली है, जिसमें डीजीपी मुख्यालय में पदस्थापित सिपाही रंजीत राणा की आवाज बताई जा रही है। इसमें वह एक व्यक्ति से ओड़िसा के एक कारोबारी का नंबर मांग रहा है। यही वह कारोबारी है जिसने अपने पत्र में आरोप लगाया था कि राजेश राम ने कोयला कारोबार कराने के नाम पर उससे 65 लाख रुपये एक ट्रांसपोर्टर के अकाउंट में ट्रांसफर कराए थे। बाद में कारोबारी को पैसे वापस मिल गए, लेकिन यह खुलासा अब तक नहीं हुआ कि उसने पत्र किसे लिखा था। वहीं, राजेश राम ने लीगल नोटिस में इस आरोप को सिरे से खारिज किया है और मीडिया से खंडन प्रकाशित करने की मांग की है।
बड़ा सवाल बरकरार
अगर राजेश राम सिर्फ अपने मुकदमों की पैरवी के लिए डीजीपी कार्यालय आता था, तो फिर सिपाही रंजीत राणा ओड़िसा के उसी कारोबारी का नंबर क्यों ढूंढ़ रहा था? और किसके कहने पर? यह पूरा मामला डीजीपी कार्यालय और पुलिस व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
Reporter | Samachar Post