- चाईबासा के पिछड़े गांव से निकले डॉ. बलभद्र बिरुवा, दिल्ली यूनिवर्सिटी के सत्यवती कॉलेज में अकेले ‘हो’ आदिवासी प्रोफेसर
Samachar Post डेस्क, रांची : अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो इंसान किसी भी कठिनाई को मात देकर आगे बढ़ सकता है। कोल्हान के चाईबासा जिले के मंझारी प्रखंड के बरकुंडिया गांव के डॉ. बलभद्र बिरुवा इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। गांव की कमजोर अर्थव्यवस्था को देखते हुए उन्होंने अर्थशास्त्र विषय में पढ़ाई करने का संकल्प लिया और आज दिल्ली यूनिवर्सिटी के अंगीभूत सत्यवती कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर (इकोनॉमिक्स) के पद पर कार्यरत हैं।
गांव की हालत से मिली प्रेरणा
डॉ. बिरुवा का कहना है कि बचपन से ही उन्होंने गांव की दयनीय आर्थिक स्थिति देखी थी। इसी कारण उन्हें अर्थशास्त्र विषय में गहरी रुचि हुई और उन्होंने इसी विषय में पीएचडी की। वर्तमान में वे भारतीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर छात्रों को पढ़ाते हैं।
अकेले हैं हो आदिवासी प्रोफेसर
करीब 190 टीचिंग स्टाफ वाले सत्यवती कॉलेज में डॉ. बलभद्र बिरुवा अकेले ‘हो’ आदिवासी प्रोफेसर हैं। यह उपलब्धि न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे आदिवासी समाज के लिए गर्व की बात है। फिलहाल वे एडहॉक श्रेणी में कार्यरत हैं।
शैक्षणिक यात्रा
- ग्रेजुएशन: सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची
- पोस्ट ग्रेजुएशन: जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, दिल्ली
- पीएचडी: दिल्ली यूनिवर्सिटी
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मैंने सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली है। पत्रकारिता के क्षेत्र में बतौर रिपोर्टर मेरा अनुभव फिलहाल एक साल से कम है। सामाचार पोस्ट मीडिया के साथ जुड़कर स्टाफ रिपोर्टर के रूप में काम कर रही हूं।