Samachar Post डेस्क, रांची : झारखंड सरकार के कैबिनेट द्वारा लिए गए फैसले के तीन महीने बाद भी राज्य के लगभग 15 हजार आउटसोर्स कर्मियों को मानदेय वृद्धि का लाभ नहीं मिल पाया है। सरकार की सुस्ती से सचिवालय, समाहरणालय, प्रखंड और अन्य सरकारी कार्यालयों में कार्यरत कर्मियों में गहरी निराशा है। आउटसोर्स कर्मी लंबे समय से आंदोलनरत हैं, लेकिन अब तक सरकार पर इसका कोई असर नहीं दिखा।
मई में कैबिनेट ने दी थी मंजूरी
22 मई 2025 को मंत्रिपरिषद ने आउटसोर्स कर्मियों की नियुक्ति और सेवा शर्तों को नियमित व पारदर्शी बनाने के लिए झारखंड प्रोक्योरमेंट ऑफ गुड्स एंड सर्विस मैन्युअल को मंजूरी दी थी। इसके तहत वित्त विभाग के विशेष सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन हुआ, जिसमें जैप-आईटी के सीईओ, कार्मिक विभाग के संयुक्त सचिव आसिफ हसन और श्रम नियोजन विभाग के उप सचिव रेज्युस बाढ सदस्य बनाए गए। कमेटी को महंगाई दर के आधार पर विभिन्न श्रेणी के कर्मियों के लिए नए मानदेय की अनुशंसा करनी थी। लेकिन तीन महीने बाद भी कमेटी की कोई बैठक नहीं हुई, जिससे पूरा मामला अटका हुआ है।
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वर्षों पुराने दर पर मिल रहा मानदेय
आउटसोर्स कर्मियों को कई साल पहले जैप-आईटी द्वारा तय किए गए दर पर ही भुगतान किया जा रहा है। इस राशि से एजेंसियां निश्चित हिस्सा काट लेती हैं। समय पर वेतन भुगतान न होना, EPF की राशि जमा न करना, अलग-अलग विभागों द्वारा अपनी मर्जी से कर्मी नियुक्त करना, जैसी गंभीर शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं।
मैन्युअल का उद्देश्य अधूरा
मैन्युअल का मकसद तकनीकी व सहयोगी कर्मियों, जैसे कंप्यूटर ऑपरेटर, डाटा एनालिस्ट, प्रोग्रामर, आदेशपाल, चालक और सफाईकर्मी, की सेवा शर्तों को पारदर्शी बनाना था। लेकिन कमेटी की निष्क्रियता के कारण लाभ कर्मियों तक नहीं पहुंच पा रहा है।
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मैंने सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री ली है। पत्रकारिता के क्षेत्र में बतौर रिपोर्टर मेरा अनुभव फिलहाल एक साल से कम है। सामाचार पोस्ट मीडिया के साथ जुड़कर स्टाफ रिपोर्टर के रूप में काम कर रही हूं।