- दुर्भाग्य : रिम्स में विभाग खुलने के 5 साल बाद भी शुरू नही करा सके राज्य में किडनी ट्रांसप्लांट
- नतीजा : हर माह 25 ऐसे रोगी रिम्स पहुंचते हैं जिन्हें ट्रांसप्लांट की जरूरत, दूसरे राज्य जाकर 5-6 की करा पाते है प्रत्यारोपण
Samachar Post, रांची : हर साल दुनिया भर में 14 मार्च को वर्ल्ड किडनी दे के रूप में मनाया जाता है। किडनी से संबंधित बीमारियों को लेकर जागरूकता फैलाई जाती है। जानकर हैरानी होगी कि झारखंड राज्य में आज भी किडनी को लेकर संपूर्ण इलाज की व्यवस्था नही है। लोगों को आज भी बेहतर चिकित्सा के लिए राज्य के बाहर जाना पड़ता है। झारखंड के नेफोलॉजिस्टों से मिले आंकड़े के अनुसार, यहां हर 100 बीमार रोगियों में करीब 14 लोग किडनी से संबंधित बीमारी के हैं। करीब पांच साल पहले यह संख्या 100 में 10 के करीब थी। यानी 5 साल में किडनी रोगियों की संख्या में 35% तक बढ़ोत्तरी हुई है। ज्यादातर मामलों में ऐसे रोगियों को किडनी ट्रांसप्लांट की भी सलाह दी जाती है, लेकिन दुर्भाग्य है कि झारखंड में आज भी किडनी ट्रांसप्लांट शुरू नही हो सका है। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में ट्रांसप्लांट शुरू कराने के लिए कागजी प्रक्रिया शुरू की गई थी, फाइल स्वास्थ्य विभाग में मंजूरी के लिए भेजी गई थी जो अबतक वापस नही लौटी है। नतीजन, रिम्स के ओपीडी में हर माह करीब 15 ऐसे रोगी पहुंचते है जिन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। चिकित्सकों की सलाह पर इनमें से मात्र 5-6 रोगी ही दूसरे राज्य जाकर किडनी प्रत्यारोपण करा पाते हैं।
क्यों शुरू नही हो सका किडनी ट्रांसप्लांट?
रिम्स में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू करने का प्रयास दोबारा बीते साल सितंबर में तेज हुई थी। रिम्स के स्टेट आर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन (सोटो) ने इससे संबंधित प्रस्ताव स्वास्थ्य विभाग को भेजा था। प्रस्ताव में यह बताया गया था कि रिम्स में नेफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी, सुपर स्पेशियलिटी विंग के अलावा प्रशिक्षित एनिस्थिसिया विभाग के डॉक्टर हैं, इसलिए किडनी ट्रांसप्लांट को अनुमति मिलने के बाद शुरू किया जा सकता है। नेफ्रोलॉजी और यूरोलॉजी विभाग द्वारा भी इससे संबंधित प्रस्ताव रिम्स प्रबंधन को भेजा गया था। बावजूद फाइल स्वास्थ्य विभाग में ही अटकी पड़ी है। विभाग से अनुमति नही मिलने के कारण अबतक ट्रांसप्लांट शुरू नही हो सका।
ट्रांसप्लांट शुरू नही होने का बड़ा कारण यह भी…
- अभी रिम्स के किडनी विभाग में सिर्फ एक चिकित्सक हैं। किडनी ट्रांसप्लांट के लिए एक्सपर्ट सर्जन चाहिए जो रिम्स में नहीं हैं।
- ट्रांसप्लांट के लिए अलग स्पेस चाहिए, जो ओटी से सटा हो, पर ऐसी जगह अबतक अलॉट नहीं की गई है।
- प्रत्यारोपण में ट्रांसप्लांट को-ऑर्डिनेटर की अहम भूमिका होती है। इस पद के लिए 3 उम्मीदवारों में एक का चयन हुआ था, पर किसी ने ज्वाइन नहीं किया।
- स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (सोटो) में अब भी दो पद रिक्त हैं।
- ट्रेंड नर्सिंग स्टाफ की जरूरत, पर रिम्स में ट्रांसप्लांट के लिए कोई ट्रेंड नर्सिंग स्टाफ नहीं है, जो हैं उन्हें पहले ट्रेनिंग की जरूरत है।
सिर्फ रिम्स में हर माह 20-25 मरीज पहुंचते हैं, 5-6 दूसरे राज्यों में कराते हैं ट्रांसप्लांट
रिम्स से मिली जानकारी के अनुसार, हर महीने औसत 20 से 25 ऐसे मरीज पहुंचते हैं, जिन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है। इनमें से 5-6 मरीज हर महीने बाहर दूसरे राज्यों में जाकर किडनी ट्रांसप्लांट कराते हैं। ज्यादातर मरीज इसलिए ट्रांसप्लांट नहीं कराते, क्योंकि उनके पास डाेनर नहीं होता और डोनर होने पर भी प्रत्यारोपण का खर्च वहन करने की क्षमता नहीं होती।
हर राेज नेफ्रोलॉजी विभाग के ओपीडी में 30 से 40 मरीज ले रहे परामर्श
रिम्स में किडनी विभाग शुरू हुए चार साल पूरे हो गए। विभाग की हेड डॉ. प्रज्ञा पंत घोष की देखरेख में विभाग का संचालन भी हो रहा है। हर राेज नेफ्रोलॉजी विभाग के ओपीडी में 30 से 40 मरीज चिकित्सीय परामर्श ले रहे हैं। लेकिन जिस विभाग में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू करने की बात थी, उस विभाग को चार साल बाद भी अपना फुल फंक्शनल वार्ड नहीं मिल सका है।
जीवनशैली में बदलाव के कारण किडनी के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा…
समय के साथ बढ़ती किडनी की समस्याओं के बारे में नेफ्रोलॉजी विभाग की हेड डॉ. प्रज्ञा घोष पंत ने बताया कि जीवनशैली में बदलाव के कारण किडनी के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हर 100 लोगों में से 14 को किडनी की समस्या है। ये आंकड़े पिछले वर्षों में बढ़े हैं। लेकिन, यह घातक नहीं है। इन 14 लोगों में भी सिर्फ 25 से 30 प्रतिशत मरीजों को ही डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। इसका सबसे बड़ा कारण शुगर और बीपी है। क्योंकि, 70% मरीज सिर्फ दवा और सही खान-पान से ही सामान्य जीवन जी सकते हैं।
बीमारी के मुख्य लक्ष्ण :
डॉ. प्रज्ञा घोष पंत ने बताया कि किडनी की बीमारी के लक्षण काफी सामान्य और ध्यान आकर्षित करने वाले नहीं होते हैं, जिससे लोगों को पता ही नहीं लगता कि उन्हें किडनी की बीमारी है। स्वस्थ शरीर के लिए उन्होंने लोगों को वर्ष में एक बार जांच कराने की सलाह दी। किडनी की बीमारी के ये कुछ सामान्य लक्षण हैं…
-भूख नहीं लगना
-खून नहीं बनना
-लगातार थकान होना
-शरीर में सूजन होना
सवाल :: जवाब
एंटीबॉयोटिक्स और दर्द की दवा से कैसे किडनी खराब होती है?
अत्यधिक एंटीबॉयोटिक्स किडनी में एंटी ऑक्सीडेंट्स की मात्रा को कम करता है। किडनी में जो सामान्य ऑटोरेगुलेशन होता है, उसे बिगाड़ता है। कुछ एंटीबॉयोटिक्स और दर्द निवारक किडनी में एलर्जिक या इंटरस्टिटियल नेफ्राइटिस नामक बीमारी पैदा करते है, जिससे उचित समय पर इलाज नहीं होने पर किडनी में क्रोनिक (स्थाई) बदलाव आ जाते हैं।
क्रॉनिक किडनी फेल्योर का इलाज क्या?
किडनी फेल्योर का इलाज कारणों के अनुरूप होता है। जब रक्तचाप कम होने की वजह से ऐसा होता है तो आईवी फ्ल्यूड या रक्त चढ़ाते हैं। हृदय या लीवर की वजह से होने वाले फेल्योर में उसके अनुसार इलाज करते हैं।
अनुवांशिक किडनी रोग कैसे रोकें?
अनुवांशिक किडनी रोग मरीज से उसके बच्चों में फैलता है। रोग को अगली पीढ़ी में ट्रांसफर होने से रोकने के लिए समय रहते पहचान होना जरूरी है। अनुवांशिक किडनी बीमारी रही है, तो गर्भावस्था के दौरान ही जांच कराएं।