Samachar Post, अनगड़ा/रांची : देश और दुनिया में पशुओं पर होनेवाली क्रूरता के खिलाफ विभन्न संगठन लोगों को जागरूक कर रहे हैं। पशु बलि की प्रथा को खत्म करने की मांग हो रही है। लेकिन, भारत में शक्ति के उपासक अपनी आराध्य देवी मां दुर्गा और काली को खुश करने के लिए खास अवसरों पर पशुओं की बलि देते हैं।
अपने देश में पशुओं की बलि का लंबा इतिहास है। ऐसी मान्यता है कि खास मंदिरों में यदि बलि देकर मन्नत मांगो, तो वह पूरी हो जाती है। झारखंड की राजधानी रांची से सटे अनगड़ा के भी एक गांव में ऐसा ही मंदिर है। बताते हैं कि हाहे गांव में मां दुर्गा की एक प्राचीन मंदिर है। यहां बकरे की बलि देने से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है।
देवघरिया ब्राह्मण ने 107 साल पहले इस मंदिर की स्थापना की थी। गांव के लोग बताते हैं कि वर्ष 1910 में परशुराम देवघरिया ब्राह्मण ने इस मंदिर की स्थापना की। जिस शख्स ने मंदिर की स्थापना की थी, उनकी कोई संतान नहीं थी। रजरप्पा मंदिर में उन्होंने बलि प्रदान की और मां छिन्नमस्तिका से संतान सुख की प्राप्ति की कामना की। वहां से लौटने के बाद उन्होंने मंदिर की स्थापना की। मंदिर की स्थापना के बाद उन्हें संतान सुख की प्राप्ति हुई।
इसके बाद से ही इस मंदिर में बकरे की बलि की परंपरा शुरू हुई। कहते हैं कि हर साल इस मंदिर में कम से कम 400 बकरों की बलि दी जाती है। मंदिर के पुजारी पंडित सुबीर देवघरिया एवं सूर्यनारायण देवघरिया ने बताया कि मंदिर में दुर्गा पूजा का आयोजन धूमधाम से होता है। लोग दुर्गा पूजा के नौवें दिन यानी नवमी को दूर-दूर से आते हैं इस प्राचीन मंदिर में बलि प्रदान करने के लिए। मुख्य मार्ग से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर में नवमी के दिन बलि प्रदान की जाती है। इस दिन इस मंदिर में सुबह से शाम तक भक्तों की लंबी कतार लगी होती है। भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।